Monday, March 2, 2009

अब चारों मुड़ा जिन्न होगे

अब चारों मुड़ा जिन्न होगे
(छत्तीसगढ़ी रचना)

नाव भर रहिगे ‘महत्मा गांधी’, सोर उड़े करनी नंदा गे।
सच के गोठ ढन कर, वो कब के काल कोठरी मं धंधागे।।

वो जुग मं सिरतोनेच रिहिस होही, धरम करम अउ अहिंसा।
मुरदा पटागे बनदुकी गोली मं, का उही आवय हिंसा।।

गांधीजी के नानुक पटका, लाज बांचिस लगोंटी के लटका।
बरगना बरगे ‘मिनिड्रेस’ मं, नोनी ल कोन दे दिस भटका।।

वोखर उपास हर राहय देसबर, एक डग अउ तपसिया।
अब कोल्हिया सहीं भूख हरताल, बन गे हे कई समसिया।।

वो डोकरा के दंगर-दंगर रेंगई हर अब सपना होगे।
आसरा-तसमा अउ लउठी, के बैरी बर तपना होगे।।

तीन बेंदरा गांधीजी के देवयं देस ल अड़बड़ सिक्छा।
अब कई ‘लंकाकांड’ बर, अप्पत पाक दे डारिस दिक्छा।।

सहत हें रोज, लोक्खन के आतंकवाद बनेच्च दिन्न होगे।
जुन्ना ‘जिन्ना’ के दोस्ती हर, अब चारों मुड़ा जिन्न होगे।।


रचना – टी.आर देवांगन
तिथि – 15/09/2003
स्थान – उरला (बी.एम.वाय.)
जिला – दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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