Monday, March 2, 2009

कुम्हार के कुम्हारी

कुम्हार के कुम्हारी

(छत्तीसगढ़ी रचना)

अहो भाग छत्तीसगढ़, तंय बाढ़ गे अड़बड़।

बिसरागे माटी के भंड़वा, ये दे करे गड़बड़।।1।।

हंड़िया मं चांउर तंउरय, भात पसावय कुंड़ेरा।

परई मन लाज ढांकय, चिमनी दिया के बेरा।।2।।

दरहा ठेकवा फसकसाय, भूंजय साग कनौजी।

सरी ल नचाय करछुल, रांधय छुटकी भौजी।।3।।

दुगून होय-रोटी तवा मं, सोंहारी ह तेलई।

दूध दुहाय दुहनी मं, तहू ल झपटे बिलई।।4।।

अथान बपुरा कराही मं, चंदा झांकय मरका।

रंगरेज रंगय नांद मं, मुंहांटी खोजय फरका।।5।।

नांदी अंजोर करय, मंढ़वा मं सोहय करसा।

गमला मं फूल झूमय, पतरी बनाय परसा।।6।।

थकासी हरय गोड़धोवना, संधो देवय चुल्हा।

गरुवा चांटय कोटना, निसान बजाय थुलथुलहा।।7।।

तबला घटके नाचा मं, होरी मं बजय नगाड़ा।

दमउ सुहाय बिहाव मं, उपास मं फरार सिंघाड़ा।।8।।

खपरा मन अगास ताकयं, देवी भावय खप्पर।

जवांरा मं माई कलस, सांठ मांगय सांक्कर।।9।।

पोरा मं पोरा पटकयं, पूजय नांदिया बइला।

अरे ठेठरी खुरमी चढ़ाव, मुहूं झन अइंया।।10।।

अकती मं पुतरी पुतरा, मांड़य काहे के बिहाव।

टूरी-टूरा मात जावयं, करय कोन हियाव।।11।।

सुन्दर, सुघ्घर सुराही, टिपटिप ले भरय गगरी।

सरी बुता लोहा झेले, जल काजर कस सगरी।।12।।

सागर-मंथन-मेरिसा मं, गोरस-रत्नन भर मलिया।

तइहा मटका आजो छागे, थरियन मंबूमंय बोजलिया।।13।।

अंजोर बोहय गुवालिन, चंदैनी कस सुरौती दिया।

ढुंड़वा रोवय घुरवा मं, डीठ झर्रावय चुकिया।।14।।

मांटी, सोन के भंड़वा, दोस नइ देवयं दोनों।

बांचे के दोस न पूछन, झन बउरव भइ कानों।।15।।

फेर होगे धंधा चौपट, कुम्हार के कुम्हार।

नंदागे सब चाक गढ़न, त का करे मंझधारी।।16।।

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रचना – टी.आर देवांगन

तिथि –4/12/2003 एवं 15/03/2004

स्थान – उरला (बी.एम.वाय.),

जिला – दुर्ग (छत्तीसगढ़) 490025

1 comment:

GK said...

नंदा गे कुम्हार के कुम्हारी। अब्बड़ सुघ्घर कविता ए। कुम्हार के कुम्हारी के बने बरनन होय हे।