Monday, March 2, 2009

बनगे भारत छत्तिसगढ़िया

बनगे भारत छत्तिसगढ़िया
(छत्तीसगढ़ी रचना)
इहॉं के मन निच्चट सिधवा हें, एक्को झन नई हे कोढ़िया।
नवा तिरथ ए भिलई-कोरबा, इंकर पुजारी छत्तिसगढ़िया।।

गांधीजी के तीन बेंदरा कस, जम्मों संगी चुप्पे रइथें।
कतको छावय दुख-बदरी के, घांठा परे असन सहिथें।
झांझ, जाड़ अउ बरखा मन ह, खेत-खार जस बनगे कुरिया।।

लटलट ले लटके आमा कस, ये जन गंज ओरमत रइथें।
बल-बुध मं हे कतको आगर, पखरा चपकाये अस सहिथें।
अगम-जानी अस सबला जानयं, तबले कहाथें निच्चट अड़हा।।

हमरे सेवुक मन ल डरराथें, कोरट-कछेरी ल का जानें।
धन-दोगानी गंज ठगाथें, बहुरूपिया ल कस पहिचानें।
तिरथ धाम-पंडा ल मानय, दान-पुन्न बर छत्तिसगढ़िया।।

गांव-खेत मं मिल-जुर रहिथें, अपन-दिसर के करयं किसानी।
नता-गोता ह गांव म बगरे, धन-मिहनत के गजब मितानी।
अटके-खंगे ल घलो चलाथें, अइसन सिधवा छत्तिसगढ़िया।।

राजा-भोज अउ गंगू तेली, बड़े छोटे के भेद मिटागे।
पढ़े-लिखे-अनपढ़ संगी हें, जात-पात निच्चट सिट्ठागे।
पहिरन-ओढ़न एक्केच होगे, बनगे भारत छत्तिसगढ़िया।।

रचना – टी.आर देवांगन
तिथि –5/05/2003
स्थान – उरला (बी.एम.वाय.),
जिला – दुर्ग (छत्तीसगढ़) 490025

2 comments:

GK said...

छत्तीसगढ़िया मन के सुघ्घर अऊ सही बरनन करे गे हे। सब ले बढ़िया,छत्तीसगढ़िया। इंखरे जइसे भारत के जम्मों नागरिक मन ल बनना चाही।

Santosh Kumar said...

nwabihan.blogspot.in