Monday, March 2, 2009

चुनाव के चुनचुनिया

चुनाव के चुनचुनिया
(छत्तीसगढ़ी रचना)

टिकिट बर आइस उम्मीदवार मन के,
मुड़पुरूस भर अरजी।
जनता के का बस, अरे वोहर त रहिस,
हाई-कमान के मरजी।।

उम्मीदवार मन परसत हें, कई किसम के चारा।
वो अरझ गे मुंह मं, अब पछतावत हे मरहा बिचारा।।

धरत हें बइगा गुनियां, देखावत हें दिया-बाती,
अंध-बिसवांस ल जगावत हें।
बिचरवात हें, मनउती मनात हें कई दिन राती,
कहत हमर पुरकवती चले आत हे।।

बगरे हे पोसटर, पांपलेट, बैनर, चकर बिल्ला।
वो वोट बर नोट रपोटत हें माई पिल्ला।।

अरे कोनों जीत गें त,
चुनांव के खरचाच ल तुरते भंजाही।
सिखहा असिकहा नइ लागय,
यो अइसन ठउर ए के तुरते मंजाही।।

बड़ पावर हे वोट के ‘जनता’ के ‘जन’ मं।
‘हैलोजन’ मं अस पावर हे, ‘है-लो-जन’ मं।।

रचना – टी.आर देवांगन
तिथि – 18/11/2003
स्थान – उरला (बी.एम.वाय.)
जिला – दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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