Tuesday, March 3, 2009

आमा के बखान

आमा के बखान
(छत्तीसगढ़ी रचना)
नंगत ले बइहाये मऊर, ए दे पर बर लटलट ले फर गे।
देस के भुंइया ला अमरे बर, आमा के डारा निहरगे।।
मंदरस किरवा कस लइकन झूमगे, देख आमा के कयरी।
जमदूत कस मुछर्रा रखवार, हावय ननमुन के बयरी।।
कीरा परय ए आमा ल, दुब्बर ल दू असाड़ सहीं भाव।
कब खाबोन एला ते, वोदे कउंवा करत हे कांव-कांव।।
छक्कत ले खाये रेहेन,वहा पईत, वो आमा चौंसा।
बिहाव के झरती मं, सुरता हाबय, वो घर आवय मौसा।।
गंज गुरतुर टेटकू घर के आमा, हावय नानुक गोही।
अड़बड़ अम्मट ठाकुर घर के, जिंहा धराय हे बटलोही।।
देसी आमा के गरती, कहां होगे भरती, नोहर होगे।
नवा के हे सोर, जुन्ना खोजे नइ मिलय, मोहर होगे।।
सरी दिन के अम्मट आमा, बंधाय कलमी मिट्ठा होगे।
सिरतोन जानय ते जनइया, अनजान बर सिट्ठा होगे।।
अलग हे मजा-मेंगोसेक, मुरब्बा, अचार, चटनी अमरसा।
मंझनिया के चरबन बर, धर के लइकन जावथे मदरसा।।
झांझ ह भूंजत हे लाई सहीं, कभू झोला झन सपड़य।
आमा के पनहा, भूंजे गोंदली, ए झोला ला रगड़य।।
सास्तर ह कहिथे, आमा उगवइया ह बेटवा ल पाथे।
अउ बगिच्चा लगवइया ल, भगवान रामेच्च हर भाथे।।
अलफांसो, बैगनफल्ली, फजली, नीलम दसहरी, लंगड़ा।
आमा-अमिया के बिहाव मं, माइपिल्ला नाचत हें भंगड़ा।
-----------------------------------------------------------------------------------------------
रचना – टी.आर देवांगन
तिथि –21/6/2003
स्थान – उरला (बी.एम.वाय.),
जिला – दुर्ग (छत्तीसगढ़) 490025

1 comment:

GK said...

आमा के बखान ह अब्बड़ निक लागिस हे। मुंहू मे पानी आ गे।